नगरीय सभ्यता द्वारा धूल को हेय समझने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य करते हुए लेखक कहता है कि धूल को माथे से लगाने योग्य है। इससे देशभक्ति की भावना की अभिव्यक्ति होती है पर नगर का अभिजात्य और आधुनिक कहलाने वाले वर्ग यदि इसे माथे से न लगाए तो इस पर पैर रखकर इसका अपमान भी न करे। अर्थात धूल का अपमान नहीं सम्मान करना चाहिए।