तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनकी काव्य-भाषा रस की खान है। रामचरितमानस में उन्होंने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें चौपाई-दोहा शैली को अपनाया गया है। दोनों छंद गेय हैं। तुलसी की प्रत्येक चौपाई संगीत के सुर में ढली हुई जान पड़ती है। उन्होंने संस्कृत शब्दों को विशेष रूप से कोमल और संगीतमय बनाने का प्रयास किया है। भाषा को कोमल बनाने के लिए उन्होंने कठोर वर्गों की जगह कोमल ध्वनियों का प्रयोग किया है। जैसे–’श’ की जगह ‘स’, ‘ण’ की जगह ‘न’, ‘क्ष’ की जगह ‘छ’, ‘य’ की जगह ‘इ’ आदि। जैसे-• नाथ संभुधनु भंजनिहारा। इस काव्यांश में वीर तथा हास्य रस की भी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। मुहावरों और सूक्तियों के साथ-साथ वक्रोक्तियों का प्रयोग भी मनोरम बन पड़ा है।