भगत की पुत्रवधू जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं। उनका एकमात्र पुत्र मर चुका है। वे बूढे हैं और भक्त हैं। उन्हें घर-बार और संसार में कोई रुचि नहीं है। अतः वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं दे पाएँगे। इसलिए पुत्रवधू सेवा-भाव से उनके चरणों की छाया में अपने दिन बिताना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन और दवा-दारू का प्रबंध करना चाहती थी।