बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र ने लागै कोइ’ का भाव यह है कि जिस व्यक्ति में राम प्रभु से दूर रहने पर उन्हें पाने की तड़प जाग उठती है उस व्यक्ति की दशा विष पीड़ित से भी खराब हो जाती है। इस व्यथा को शब्दों के माध्यम से प्रकट नहीं किया जा सकता है। साँप के विष को तो मंत्र द्वारा भी उतारा जा सकता है, परंतु राम की विरह व्यथा शांत करने का कोई उपाय नहीं है। ऐसी दशा में राम की वियोग व्यथा झेल रहा व्यक्ति के पास मरने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं होता है। यदि वह जीता भी है तो उसकी दशा पागलों जैसी होती है क्योंकि वह न सांसारिक विषयों में मन लगा पाता है और न राम से मिल पाता है।