माता का अँचल नामक पाठ में बच्चों की जिस दुनिया की संरचना की गई है उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। पाठ में तीस-चालीस के दशक के आस-पास का वर्णन है। इस ग्रामीण परिवेश में खेतों में उगी फ़सलें, फ़सलों के बीच उड़ती-फिरती चिड़ियाँ, उनका बालकों द्वारा उड़ाया जाना, बिल में पानी डालना और चूहे की जगह साँप निकलने पर डरकर भागना, आम के बाग में बच्चों का पहुँचना और वहाँ भीगना, बिच्छुओं को देखकर भागना, मूसन तिवारी को चिढ़ाना, माता दुवारा पकड़कर बलपूर्वक तेल लगाना, टीका लगाना आदि का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण है।