भोलानाथ को अपने साथियों के साथ खेलने में गहरा आनंद मिलता है। वह साथियों की हुल्लडबाजी, शरारतें और मस्ती देखकर सब कुछ भूल जाता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है। भोलानाथ का साँप से भयभीत होकर भागना तथा पिता जी की शरण में न जाकर माँ के आँचल में छिपने जैसे प्रसंग मन को अनायास छू जाते हैं।