पौधों की पत्तियों की सतह पर असंख्य छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं, जो भीतरी पादप ऊतकों और बाहरी पर्यावरण के बीच गैसों का आदान-प्रदान करते हैं। इन छिद्रों को स्टोमेटा रंध्र (स्टोमेटा) कहते हैं। वायु अन्य जीवित कोशिकाओं तक विसरण के द्वारा पहुँचती हैं, वातरंध्र तनों के छाल में उपस्थित छिद्र है, जिनके द्वारा तना वातावरण से गैसों का आदान-प्रदान करता है। द्वितीयक वृद्धि के बाद वात रंध्रों को निर्माण इसलिए होता है, क्योंकि कॉर्क कोशिकाएँ अवकाशविहीन एवं सुवेरिनयुक्त होने के कारण अपारगम्य होती हैं।