देवत्व का सिद्धान्त
मौर्योत्तर काल में कुषाण राजाओं ने अपनी तुलना देवताओं से की। उन्होंने देवपुत्र की उपाधि धारण की। वे स्वयं को देवताओं का अंश मानते थे। ऐसी पद्धति समकालीन रोमन, यूनानी और ईरानी पद्धति में विद्यमान थी जिसे देवत्व का सिद्धान्त कहा गया। विदेशी शासकों ने सामाजिक स्वीकृति हेतु इस धार्मिक वैधता को आवश्यक माना तथा अपने राज्य में इसका पालन किया।