खाद्य श्रृंखला
सभी जीवों को अपना जीवन तथा जैव क्रियाएँ चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर ऊर्जा का प्राथमिक तथा एकमात्र स्रोत सूर्य है। इस ऊर्जा को केवल हरे पौधे पर्णहरित द्वारा ग्रहण कर पाते हैं और इसी ऊर्जा का स्थानान्तरण विभिन्न श्रेणी के जन्तुओं में खाद्य स्तरों (trophic levels) द्वारा होता है। प्रत्येक स्तर पर विभिन्न रूपों में 90% ऊर्जा का अपव्यय होता है, जिसमें कुछ ऊर्जा का इस्तेमाल धारक जीव स्वयं करता है। एक खाद्य श्रृंखला में खाद्य स्तरों की संख्या 4 से 5 तक हो सकती है।
इस प्रकार ऊर्जा इन खाद्य स्तरों के सभी जीवों में होकर एक सीधी रेखा में प्रवाहित होती है। और इस प्रकार के जीवों को एक श्रृंखला के रूप में पहचाना जा सकता है। यही श्रृंखला खाद्य श्रृंखला या आहार श्रृंखला (food chain) है, अर्थात् खाद्य श्रृंखला, विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का वह क्रम है, जिसके द्वारा एक पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य पदार्थों के रूप में ऊर्जा का प्रवाह एक ही सीधी दिशा में होता है।
किसी भी खाद्य श्रृंखला के लिए हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलकर खाद्य पदार्थों का निर्माण करते हैं तथा उसे संचित करते हैं। अतः ये उत्पादक (producers) कहलाते हैं। शाकाहारी जन्तु (herbivorous animals) इन उत्पादकों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। अतः ये प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता (consumers) हैं। मांसाहारी जीव (carnivorous animals) अपने भोजन के लिए इन शाकाहारी अथवा अन्य मांसाहारियों पर निर्भर करते हैं।
ये द्वितीय अथवा तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता हैं। इसी प्रकार की खाद्य श्रृंखलाओं, जो एक-दूसरे जीव के भक्षण के लिए एक घास के मैदान में होती हैं, में से एक वह है, जिसमें टिड्डे (grasshopper) अर्थात् प्रथम उपभोक्ता पौधों (उत्पादकों) से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, टिड्डों को मेढ़क (frog) खा जाते हैं। मेढ़कों को सर्प (snake) अपना भोजन बना लेते हैं; अन्त में सर्यों को बाज (hawk) अपना भोजन बनाता है।
यहाँ मेढ़क एक कीटाहारी तथा द्वितीय श्रेणी का उपभोक्ता है जबकि मेढ़क को अपना भोजन बनाने वाला सर्प मांसाहारी तथा तृतीय श्रेणी का उपभोक्ता है। सर्प को बाज खा जाता है, जिसको कोई नहीं खाता है अर्थात् बाज उच्चतम मांसाहारी (top carnivore) अथवा सर्वोच्च उपभोक्ता (top consumer) हुआ (चित्र देखिए)। किसी भी खाद्य श्रृंखला में वैकल्पिक रास्ते बनने से वह खाद्य जाल (food web) में बदल जाती है; जैसे-हरे पौधों को खाने वाले चूहे भी हो सकते हैं तथा चूहों को सर्प खा जाते हैं अर्थात् सर्प के लिए मेढ़क के साथ चूहा भी वैकल्पिक भोजन हुआ। इसी प्रकार, बाज के लिए चूहा, सर्प तथा मेढ़क तीनों वैकल्पिक भोजन हुए।
किसी भी खाद्य श्रृंखला अथवा इनसे बने खाद्य जाल में मृत जीवों तथा इनके मृत अंगों अथवा इनके द्वारा त्यागे गये कार्बनिक पदार्थों को विभिन्न चक्रों के लिए कच्चे पदार्थों में बदलने वाले अपघटक (decomposers) भी होते हैं।
खाद्य श्रृंखलाएँ प्रमुखत: निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं –
- परभक्षी श्रृंखला (Predator Chain) – यह श्रृंखला उत्पादकों अर्थात् हरे पौधों से आरम्भ होती है तथा छोटे जन्तुओं से क्रमशः बड़े जन्तुओं में जाती है।
- परजीवी श्रृंखला (Parasitic Chain) – यह श्रृंखला भी हरे पौधों से ही आरम्भ होती है, किन्तु बड़े जीवों से छोटे जीवों की ओर चलती है।
- मृतोपजीवी श्रृंखला (Saprophytic Chain) – यह श्रृंखला मृत जीवों या मृत कार्बनिक पदार्थ (dead organic matter) से सूक्ष्म-जीवों (micro-organisms) की ओर चलती है।