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सुमित्रान्दन पन्त क्या नहीं चाहते? सुमित्रा नंदन पंत जी के बचपन का क्या नाम था? सुमित्रानंदन पन्त का जन्म कहाँ हुआ था? सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब दिया गया?

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सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गांव में हुआ था। यह जिला उत्तराखंड में स्थित है। सुमित्रानंदन पंत के पिता जी का नाम गंगा दत्त और माताजी का नाम सरस्वती देवी था। पंत जी के जन्म के कुछ ही समय बाद इनकी माता जी का निधन हो गया।सुमित्रानंदन पंत जी का पालन पोषण उनकी दादी जी ने किया। पंत जी सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।सुमित्रानंदन पंत के बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। पंत जी को यह नाम पसंद नहीं था इसलिए इन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।
 सुमित्रानंदन पंत जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूरी की। हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 18 वर्ष की उम्र में अपने भाई के पास बनारस चले गए हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पन्त जी इलाहाबाद चले गए और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।
सत्याग्रह आंदोलन के समय पंत अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर महात्मा गांधी जी का साथ देने के लिए आंदोलन में चले गए। सुमित्रानंदन पंत फिर कभी अपनी पढ़ाई जारी नहीं कर सके। परंतु घर पर ही इन्होंने हिंदी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन जारी रखा।
1918 के आसपास तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। वर्ष 1926 – 27 में पन्त जी के प्रसिद्ध काव्य संकलन “पल्लव” का प्रकाशन हुआ। जिसके गीत सौन्दर्यता और पवित्रता का साक्षात्कार करते हैं।कुछ समय बाद वे अल्मोड़ा आ गए। जहां भी मार्क्स और फ्राइड की विचारधारा से प्रभावित हुए थे। वर्ष 1938 में पंत जी ने “रूपाभ” नाम का एक मासिक पत्र शुरू किया। वर्ष 1955 से 1962 तक पन्त जी आकाशवाणी से जुड़े रहे और मुख्य निर्माता के पद पर कार्य किया। इनकी मृत्यु 28 दिसंबर 1977 को गई हिंदी साहित्य का प्रकाशपुंज संगम नगरी इलाहाबाद में हमेशा के लिए बुझ गया। सुमित्रानंदन पंत  जी को आधुनिक हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है।

 सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय

सुमित्रानन्दन पन्त छायावादी युग के महान् कवियों में से एक माने जाते हैं। सात वर्ष की अल्पायु से ही इन्होंने कविताएँ लिखना प्रारन्भ कर दिया था। 1916 ईंवी में इन्होंमे गिरजे का घण्टा नामक सर्वप्रथम रचना लिखी। इलाहाबाद के म्योर काँलेज में प्रवेश लेने के उपरान्त इनकी साहित्यिक रूचि और भी अधिक विकसित हो गई। 1920 ई0 में इनकी रचनाएँ उच्छवास और ग्रन्थि मे प्रकाशित हुईं। इनके उपरान्त 1927 ई0 मे इनके वीणा और पल्लव नामक दो काव्य 1942 ई0 में इनका सम्पर्क महर्षि अरविन्द घोष से हुआ।इन्हें कला और बूढ़ा चाँद पर “साहित्य अकादमी पुरस्कार”, लोकायतन पर “सोवियत भूमि पुरस्कार” और चिदम्बरा पर “भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। भारत सरकार मे पन्त जी को “पद्मभूषण” की उपाधि से अलंकृत किया।
अपने भाई के पास बनारस चले गए हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पन्त जी इलाहाबाद चले गए और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया।
सत्याग्रह आंदोलन के समय पंत अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर महात्मा गांधी जी का साथ देने के लिए आंदोलन में चले गए। सुमित्रानंदन पंत फिर कभी अपनी पढ़ाई जारी नहीं कर सके। परंतु घर पर ही इन्होंने हिंदी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन जारी रखा।
1918 के आसपास तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। वर्ष 1926 – 27 में पन्त जी के प्रसिद्ध काव्य संकलन “पल्लव” का प्रकाशन हुआ। जिसके गीत सौन्दर्यता और पवित्रता का साक्षात्कार करते हैं।कुछ समय बाद वे अल्मोड़ा आ गए। जहां भी मार्क्स और फ्राइड की विचारधारा से प्रभावित हुए थे। वर्ष 1938 में पंत जी ने “रूपाभ” नाम का एक मासिक पत्र शुरू किया। वर्ष 1955 से 1962 तक पन्त जी आकाशवाणी से जुड़े रहे और मुख्य निर्माता के पद पर कार्य किया। इनकी मृत्यु 28 दिसंबर 1977 को गई हिंदी साहित्य का प्रकाशपुंज संगम नगरी इलाहाबाद में हमेशा के लिए बुझ गया। सुमित्रानंदन पंत  जी को आधुनिक हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि माना जाता है।

मुख्य रचनाएँ

 उच्छ्वास, ज्योत्सना, पल्लव, स्वर्णधूलि, वीणा, युगांत, गुंजन, ग्रंथि, मेघनाद वध (कविता संग्रह), ग्राम्‍या, मानसी, हार (उपन्यास),  युगवाणी, स्वर्णकिरण, युगांतर, काला और बूढ़ा चाँद, अतिमा, उत्तरा, लोकायतन, मुक्ति यज्ञ, अवगुंठित, युग पथ, सत्यकाम, शिल्पी, सौवर्ण, चिदम्बरा, पतझड़, रजतशिखर, तारापथ,

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