महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक प्रतिष्ठित घराने में हुआ| उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ|उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे|उनकी माता का नाम हेम रानी देवी था| उनकी माता बड़ी ही धर्म परायण, कर्म निष्ठ और और भावुक महिला थी|
उनकी माता हिंदी की विदुषी थी| तुलसी, सूर और मीरा की रचनाओं का परिचय सर्वप्रथम महादेवी जी को अपनी माता से ही प्राप्त हुआ था| उनकी माता प्रतिदिन कई घंटे पूजा पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का पाठ करती रहती थी|
महादेवी जी ने सन 1933 में संस्कृत में एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसी वर्ष प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रिंसिपल नियुक्त हो गई। महादेवी जी 7 वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थी।
सन 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तो वे एक सफल कवियत्री के रूप मे प्रसिद्ध हो चुकी थी। सन 1916 में महादेवी जी का विवाह बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया गया। जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे।
श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से व्रति थी। कारण कुछ भी रहा हो स्वरूप नारायण वर्मा से कोई व्यमनस्थ महादेवी जी को नहीं था। महादेवी जी का जीवन तो एक सन्यासिनी का जीवन था। उन्होंने जीवनभर श्वेत वस्त्र पहने, तख्त पर सोई और कभी शीशा नहीं देखा।
सन 1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगी। क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में महादेव जी का परिचय सुभद्रा जी से हुआ। कॉलेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई।
सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़कर सखियों के बीच में ले जाती और कहती सुनो यह कविता भी लिखती हैं। महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर सन 1987 में इलाहाबाद में हुआ।
रचनाऐ
सन्धिनी,नीरजा, दीपशिखा, सप्तपर्णा,, मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, रश्मि,
शृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार, अग्निरेखा,सांध्यगीत,आत्मिका