हेनरी का नियम
सर्वप्रथम विलियम हेनरी (William Henry, 1803) ने विभिन्न गैसों की द्रव में विलेयता पर दाब को मात्रात्मक अध्ययन किया और उस आधार पर एक मात्रात्मक सम्बन्ध प्रस्तुत किया जिसे हेनरी का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार, “स्थिर ताप पर, किसी विलायक के इकाई आयतन में किसी गैस की घुली हुई मात्रा, उस द्रव की सतह पर साम्यावस्था में उस गैस द्वारा लगाए गए दाब के समानुपाती होती है।”
जब किसी द्रव में कोई गैस घुली हुई हो, तो वह सतह की गैस के साथ निम्नलिखित प्रकार के साम्य में रहती है-
यदि स्थिर ताप पर विलायक के दिए गए आयतन में घुली गैस की मात्रा w हो तथा साम्यावस्था पर गैस का दाब P हो, तो
यहाँ K, एक समानुपाती स्थिरांक है जिसका परिमाण गैस की प्रकृति, विलायक की प्रकृति व ताप पर निर्भर करता है। घुली हुई गैस की मात्रा विलयन में गैस की सान्द्रता के अनुरूप प्रयुक्त की जाती है।
यहाँ K, एक समानुपाती स्थिरांक है जिसका परिमाण गैस की प्रकृति, विलायक की प्रकृति व ताप पर निर्भर करता है। घुली हुई गैस की मात्रा विलयन में गैस की सान्द्रता के अनुरूप प्रयुक्त की जाती है। गैस की विलेयता (सान्द्रता) इसके मोल प्रभाज (X) के रूप में भी प्रयुक्त की जा सकती है। हेनरी नियम के अनुसार स्थिर ताप पर किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (P), उस विलयन में गैस के मोल प्रभाज (X) के समानुपाती होता है। अत: हेनरी के नियम को निम्न प्रकार भी दिया जा सकता है-
P ∝ X
या P = KH.X ……(ii)
जहाँ, KH हेनरी स्थिरांक है, इसका मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है।