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Pratham Singh in Chemistry
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रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की सीमाएँ (अर्थात् दोष या कमियाँ) हैं

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Deva yadav
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रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की सीमाएँ अर्थात् दोष या कमियाँ

  1. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में तीव्र गति से चक्कर लगाते हैं। क्लार्क मैक्सवेल ने बताया कि विद्युत-चुम्बकीय सिद्धान्त के अनुसार, ऋणावेशित इलेक्ट्रॉनों को धनावेशित नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाने के कारण सतत रूप से प्रकाश विकिरण उत्सर्जित करने चाहिए जिससे लगातार ऊर्जा की क्षति होनी चाहिए तथा उनकी कक्षा की त्रिज्या लगातार कम होती जानी चाहिए और अन्त में वे नाभिक में गिरकर नष्ट हो जाने चाहिए। परन्तु ऐसा नहीं होता है क्योंकि परमाणु एक स्थायी निकाय है। अतः रदरफोर्ड मॉडल परमाणु निकाय के स्थायित्व की व्यवस्था करने में असफल रहा है।

  2. रदरफोर्ड के -कणों के प्रकीर्णन प्रयोग से परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों तथा इलेक्ट्रॉनों की । | संख्या के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है। अतः यह परमाणु संरचना के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं करता है।

  3. इस सिद्धान्त के द्वारा यह भी स्पष्ट नहीं होता कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर कहाँ और कैसे स्थित रहता है और उसकी ऊर्जा क्या है।

  4. परमाणु रेखीय स्पेक्ट्रम (line spectrum) देते हैं, जबकि यदि इलेक्ट्रॉन के परिक्रमण से निरन्तर ऊर्जा का उत्सर्जन होता है तो रेखीय स्पेक्ट्रम के स्थान पर सतत स्पेक्ट्रम (continuous spectrum) प्राप्त होना चाहिए था। दूसरे शब्दों में, स्पेक्ट्रम में निश्चित आवृत्ति की रेखाएँ नहीं होनी चाहिए, परन्तु वास्तव में परमाणु का स्पेक्ट्रम सतत नहीं होता। इसके स्पेक्ट्रम में निश्चित आवृति’ की कई रेखाएँ होती हैं। अतः रदरफोर्ड परमाणु मॉडल परमाणुओं के रैखिक स्पेक्ट्रम (line spectrum) को समझाने में असफल रहा है।

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियों को दूर करने के लिए नील बोर ने सन् 1913 में स्पेक्ट्रमी अध्ययन और क्वाण्टम सिद्धान्त की सहायता से अपना परमाणु सिद्धान्त तथा परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया।

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