अबू सलाबिख
अबू सलाबिख एक छोटा कस्बा था। यह कस्बा 2500 ई० पू० में लगभग 10 हेक्टेयर जमीन पर बसा हुआ था और इसकी आबादी 10,000 से कम थी। इसकी दीवारों की रूपरेखा की ऊपरी सतहों को सर्वप्रथम खरोंचकर निकाला गया। इस प्रक्रिया में टीले की ऊपरी सतह को किसी बेलचे, फावड़े या अन्य जार के धारदार चौड़े सिरे से कुछ मिलीमीटर तक खरोंचा गया। नीचे की मिट्टी तब भी कुछ नम पाई गई और पुरातत्त्वविदों ने भिन्न-भिन्न रंगों, उसकी नावट तथा ईंटों की दीवारों की स्थिति तथा गड्ढों और अन्य विशेषताओं का पता लगा लिया। जिन थोड़े-से घरों की खोज की गई उन्हें खोदकर निकाला गया।पुरातत्त्वविदों ने पौधों और पशुओं के अवशेषों को प्राप्त करने के लिए टनों मिट्टी की छानबीन की। इसके चलते उन्होंने पौधों और पशुओं की अनेक प्रजातियों का पता लगाया। उन्हें बड़ी मात्रा में जली हुई मछलियों की हड्डियाँ भी मिलीं जो बुहारकर बाहर गलियों में डाल दी गई थीं। वहाँ गोबर के उपलों के ले हुए ईंधन में से निकले हुए पौधों के बीच और रेशे मिले थे, इससे इस स्थान पर रसोई घर होने का पता चला। घरों में रहने के कमरे कौन-से थे, यह जाननेके संकेत बहुत कम मिले हैं। वहाँ की गलियों में सूअरों के छोटे बच्चों के दाँत पाए गए हैं, जिन्हें देखकर पुरातत्त्वविदों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अन्य किसी भी मेसोपोटामियाई नगर की तरह यहाँ भी सूअर छुट्टे घूमा कस्ते थे। वस्तुतः एक घर में तो आँगन के नीचे, जहाँ किसी मृतक को दफनाया गया था, सूअर की कुछ हड्डियों के अवशेष मिले हैं जिससे प्रतीत होता है कि व्यक्ति के मरणोपरान्त जीवन में खाने के लिए सूअर का कुछ मांस रखा गया था। पुरातत्त्वविदों ने कमरों के फर्श का बारीकी से अध्ययन यह जानने के लिए किया कि घर के कौन-से कमरों पर पोपलार (एक लम्बा पतला पेड़) के लट्ठों, खजूर की पत्तियों और घासफूस की छतें थीं और कौन-से कमरे बिना छत के खुले आकाश के नीचे थे।