वन-संरक्षण के उपाय
पर्यावरण के संरक्षणार्थ वनों को संरक्षण अत्यन्त आवश्यक प्रतीत होता है। वन-संरक्षण हेतु देश में संशोधित राष्ट्रीय वन नीति 1988 में लागू की गई है। इस वन नीति के मुख्य लक्ष्य पारिस्थितिकीय सन्तुलन के संरक्षण और पुन:स्थापन द्वारा पर्यावरण स्थायित्व को बनाए रखना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वन-संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं–
-
व्यापक वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों के द्वारा वन और वृक्ष के आच्छादन में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी की जाए।
-
वन उत्पादनों के उचित उपयोग को बढ़ावा देना और लकड़ी के अनुकूलन विकल्पों की खोज की जाए।
- वनों पर पड़ रहे दबाव को न्यूनतम करने के लिए जन-साधारण; विशेषकर महिलाओं को अधिकतम सहयोग प्रदान करने के लिए प्रेरित करना।
-
नदियों, झीलों और जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्रों में भूमि-कटाव और वनों के क्षरण पर नियन्त्रण किया जाए।
-
वन संरक्षण और प्रबन्धन हेतु ग्रामीण समितियों का गठन किया जाए।
-
आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नष्ट हो चुके वनों को पुनः हरा-भरा करने के लिए विशेष प्रायोजित रोजगार योजना के माध्यम से वनों को पुनर्जीवित किया जाए।
-
प्राकृतिक और मानव द्वारा लगी वनों की आग (दावानल) पर नियन्त्रण करना तथा वनों में आग | लगने की घटनाओं में कमी लाकर वनों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना।
-
रेगिस्तानी, बंजर और अनुपयुक्त अन्य प्रकार की भूमि पर उसकी प्रकृति के अनुरूप प्रजातियों की वनस्पति का विस्तार करना भी वन-संरक्षण में सहायक कदम होगा।
वास्तव में वन-सम्पदा हमारे लिए प्रकृति का अमूल्य वरदान है, अतः हमें झ्स सम्पत्ति का ब्याज ही काम में लेना चाहिए, इसके मूल को कभी भी कम नहीं करना चाहिए, तभी हम आज के भयावह पर्यावरण, असन्तुलन से राहत पा सकते है।