शीतकालीन वर्षा का भारतीय कृषि पर प्रभाव
भारत में शीतकालीन वर्षा बहुत-ही कम होती है। इसकी मात्रा कुल वर्षा का केवल 2% भाग ही है। इतनी कम वर्षा होते हुए भी फसलोत्पादन पर इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु के आरम्भ में मानसून लौटने लगते हैं; अत: इनकी दिशा बदलकर स्थल से समुद्र की ओर हो जाती है। स्थल भागों से आने के कारण लौटते मानसून आर्द्रता-शून्य होते हैं; अत: वर्षा नहीं कर पाते, परन्तु पूर्वी भूमध्य सागर में उत्पन्न चक्रवाते अर्थात् पश्चिमी विक्षोभों द्वारा उत्तरी भारत में तथा बंगाल की खाड़ी में उठने वाले चक्रवातों से : तमिलनाडु में शीतकालीन वर्षा होती है, जिसका औसत 65 सेमी रहता है।
तमिलनाडु राज्य शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त करने वाला प्रधान राज्य है। इस राज्य में मार्च से मई तक वर्षा की कमी के कारण कृषि कार्य स्थगित रखना पड़ता है, परन्तु अक्टूबर-नवम्बर माह में वर्षा होने पर नई फसलें बोई जाती हैं। अत: शीत ऋतु यहाँ कृषि उत्पादन के लिए सर्वोत्तम समय है। यहाँ शीत ऋतु में वर्षा होते ही चावल की दूसरी फसल बोई जाती है। शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के कारण ही यह क्षेत्र भारत का महत्त्वपूर्ण चावल उत्पादक प्रदेश बन गया है।