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ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

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ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा  विशेषताएँ

1. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की अवधि दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। देश के सबसे उत्तर-पश्चिमी भाग में यह अवधि केवल दो महीने की होती है। इस अवधि में 75% से 90% तक वर्षा हो जाती है।

2. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेजी से चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिमी भागों को छोड़कर ये एक महीने में सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से भरी इन पवनों के आने के साथ ही बादलों का प्रचण्ड ग़र्जन तथा बिजली चमकनी शुरू हो जाती है। इसे मानसून का फटना’ या टूटना’ कहते हैं।

3. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद मौसम सूखा रह्ता | है। मानसून के इस घटते-बढ़ते स्वरूप का कारण चक्रवातीय अवदाब हैं, जो मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी के शीर्ष भाग में उत्पन्न होते हैं और भारत-भूमि के ऊपर से गुजरते हैं।

4. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अपनी स्वेच्छाचारिता के लिए विख्यात है। इससे एक ओर तो कुहीं | भारी वर्षा से भयंकर बाढ़ आ सकती है तो दूसरे स्थान पर सूखा पड़ सकता है। इससे करोड़ों
किसानों के खेती के काम प्रभावित होते हैं।

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