वन्य-जीवन के अन्तर्गत वे जीव (पादप, जन्तु तथा सूक्ष्म जीव) सम्मिलित हैं जो अपने प्राकृतिक आवासों में मिलते हैं। मानवजाति के लिए वन्य जन्तु भी वनों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं। औद्योगीकरण, सड़क निर्माण, विद्युत परियोजनाओं तथा अन्य आधुनिक गतिविधियों के कारण वनों का विनाश हुआ है। जिससे वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं। इसी कारण अनेक वन्य जन्तुओं की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं या विलुप्तीकरण की ओर अग्रसर हैं जिनमें बाघ, काला चीतल, हिरण, जंगली सूअर, शेर आदि प्रमुख हैं। एक अनुमान के अनुसार वन्य जन्तुओं की लगभग 81 संकटग्रस्त जातियाँ विलुप्तीकरण के कगार पर हैं। वन्य जन्तुओं के प्रबन्धन से तात्पर्य जन्तुओं की वृद्धि, विकास प्रजनन, उपयोग तथा संरक्षण से है। प्रबन्धन का मूल उद्देश्य यह भी है कि किसी भी जाति का अधिक शोषण न हो, रोग तथा अन्य प्राकृतिक . आपदाओं उसके विलुप्त होने का कारण न बने तथा मानवजाति अधिक-से-अधिक लाभान्वित हो सके।