जैव समुदाय में वृद्धि, विकास एवं अस्तित्व के लिए पर्यावरण का सन्तुलित होना आवश्यक है। मानव के सभी क्रियाकलाप पर्यावरण से सम्बन्धित होते हैं तथा उसी से ही निर्धारित होते हैं। मानव का आवास इसी पृथ्वी तल पर है। वह पृथ्वी तल पर उत्पन्न होने वाली वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं से अलग नहीं रह सकता है, क्योंकि अपने भोजन और अन्य आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए वह वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं पर ही आश्रित है; अतः मानव के लिए इनकी सुरक्षा करना अति आवश्यक हो जाता है। पर्यावरण सन्तुलन के लिए आज पर्यावरण के प्रति जागरूक होना अथवा पर्यावरण का बोध होना अति आवश्यक है।
पारिस्थितिक सन्तुलन तभी बना रह सकता है जब प्रत्येक घटक सम्मिलित रूप से सभी क्रियाएँ करता रहे, जो वह पहले से करता आ रहा है; जैसे—यदि वन पर्याप्त मात्रा में बने रहते हैं तो इससे वातावरण एवं वायु में नमी बनी रहती है, जिससे वर्षा होती रहेगी, कृषि फसलों के लिए जल मिलता रहेगा, फलस्वरूप खाद्य-पदार्थों का उत्पादन होगा और भोजन की कमी नहीं रहेगी। वास्तव में पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए इसके प्रत्येक घटक का सन्तुलित अवस्था में रहना आवश्यक है।