जैन धर्म की विशेषताएं
1. एकमात्र जैन धर्म वीतरागता का उपासक है
2. अन्य सभी मत राग में धर्म मानते हैं जबकि राग संसार का कारण है।
3. सभी धर्म पुण्य को अच्छा मानते हैं जबकि पुण्य भी संसार का कारन है।
4. एक मात्र जैन धर्म कहता है की " भक्त नहीं भगवान बनेंगे"
5. सभी मतों की अंतिम सीमा स्वर्ग है जबकि जैन धर्म मुक्ति की बात करता है।
6 . मात्र जैन धर्म कहता है की "शास्त्रों में लिखे हुए को अपने विवेक,तर्क, व प्रमाण से प्रमाणित होने पर स्वीकार करो"बाकि मत कहते है की अपनी बुद्धि का प्रयोग न करो जो लिखा हई जैसा लिखा है उसे मान लो।
7. जैन शास्त्र को न्याय शास्त्र भी कहा जाता है जिसका अर्थ है की शास्त्रों की बातें न्याय के धरातल पर भी प्रमादित होती हैं
8. जैन परम्परा "श्रमण परंपरा" भी कहलाती है जिसका अर्थ है "श्रम द्वारा प्राप्त करना" अर्थात धर्म की प्राप्ति स्वयं के श्रम से स्वयं में ही होती है धर्म किसी से प्रसाद में नहीं मिल सकता।
9. एकमात्र जैन धर्म वस्तु की स्वतंत्रता काउद्घोष करता है।
10. जैन धर्म सिर्फ मानव जाति की नहीं बल्कि प्राणी मात्र के कल्याण की बात करता है।
11. जैन धर्म के सिद्धांत वैज्ञानिक व प्रमाणिक हैं।
12. सिर्फ जैन धर्म ही आत्म को परमात्मा व सिद्ध सामान बतलाता है शेष तो स्वामी और सेवक का सम्बन्ध स्थापित करते हैं।
13. अनेकांत,स्यादवाद,अकर्तत्ववाद, विश्व का अनादि निधन होना, भगवान का मात्र ज्ञाता द्रष्टा होना (करता धरता न होना) इत्यादि अनेक ऐसे सिद्धांत हैं जो स्वप्रमाणित हैं व अन्य मतों से हटकर हैं।
14. एकमात्र जैन धर्म अणु अणु की सत्ता की स्वतंत्रता की उद्घोष्णा करता है।
15. एक मात्र जैन धर्म है जो कहता है की मोक्ष की राह में भगवान् और शास्त्र और गुरु भी पर है।
16. जैन धर्म कहता है की "यदि सच्चा धर्म भी मात्र कुल धर्म जानकार अपनाया जाये तो वो सच्चा धर्म नहीं"
17 "धर्म सव परीक्षित साधना है" धर्म के मार्ग में अदन, प्रदान विधान नहीं होता।
अणु अणु की सत्ता स्वतंत्र है सभी द्रव्य मात्र स्वाधीन