मुद्राराक्षस ग्रन्थ में चन्द्रगुप्त मौर्य को ‘वृषल’ और ‘कुलहीन’ कहा गया हैं। विशाखदत्त कृत 'मुद्राराक्षस' (Mudrarakshas) से चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में विस्तृत सूचना प्राप्त होती है। इस ग्रंथ में चंद्रगुप्त को नन्दराज का पुत्र माना गया है। मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को 'वृषल' तथा 'कुलहीन' भी कहा गया है। 18वीं शताब्दी ई. में धुण्डिराज ने मुद्राराक्षस पर ने टीका लिखी।
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