जलालुद्दीन खिलजी ने खिलजी वंश की नींव रखी। वह 70 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। गुलाम राजवंश (1206-1290) के पतन के बाद खिलजी राजवंश (1290-1320) दिल्ली सल्तनत में एक नई शासक शक्ति के रूप में उभरा।
जलालुद्दीन ने केवल छह वर्ष की अल्प अवधि तक शासन किया। उसने बलबन द्वारा अपनाए कड़े नियमों को भी ढीला किया।
हालाँकि जलालुद्दीन ने अपने प्रशासन में पूर्व कुलीनों को बरकरार रखा, किंतु खिलजी के उदय ने महत्त्वपूर्ण पदों पर कुलीन वर्ग में गुलामाें के वर्चस्व को कम कर दिया।
वह सल्तनत का पहला ऐसा सुल्तान था, जिसने विचार दिया कि शासन जनता के समर्थन से चलना चाहिये तथा चूँकि भारत में हिन्दू आबादी अधिक है, अतः यह सही मायने में इस्लामिक राज्य नहीं हो सकता।
जलालुद्दीन खिलजी ने उदारता की नीति अपनाकर अभिजात्य वर्ग का समर्थन हासिल किया। उसने कड़े दंड वाली नीति का त्याग किया। यहाँ तक कि उन्हें भी कड़ा दंड नहीं दिया, जिन्होंने उसके खिलाफ विद्रोह किया था। उसने न सिर्फ उन्हें क्षमादान दिया, बल्कि उनका विश्वास जीतने के लिये सम्मानित भी किया।
हालाँकि उसके कई समर्थकों ने उसे कमज़ोर सुल्तान की संज्ञा दे डाली थी।
जलालुद्दीन खिलजी की सभी नीतियाँ अलाउद्दीन खिलजी द्वारा पलट दी गईं, जिसमें विरोध करने वालों के लिये कठोर दंड का प्रावधाान किया गया था।