महावीर स्वामी ने अपने संघों को 11 गणों में बाँट कर चतुर्विध संघ की स्थापना पावा में की थी। महावीर स्वामी ने तो आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा में शिथिलता का निवारण कर इन चार तीर्थों की पुनः स्थापना की जिसे चतुर्विध संघ के नाम से भी जाना जाता हैं। कालांतर में विद्वानों ने इसे जैन संघ की उपमा दे दी। जबकि यह तो पहले ही चली आ रही जिन परम्परा में शिथिलता का निवारण मात्र था।
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