लोकमान्य तिलक की चिता-भस्म को सिर पर चढ़ाते हुए यह महात्मा गाँधी प्रतिज्ञा की थी कि प्राण देकर भी लोकमान्य के स्वराज्य के मंत्र को पूरा करूंगा। सन 1919 ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिये स्वदेश लौटने के समय तक लोकमान्य तिलक इतने नरम हो गये थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के द्वारा स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गान्धी जी की नीति का विरोध ही नहीं किया।
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