in इतिहास
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"विदेशी राज्य चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न हो स्वदेशी राज्य की तुलना में कभी अच्छा नहीं हो सकता" यह कथन किसका है ?

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विदेशी राज्‍य चाहे वह कितना ही अच्‍छा क्‍यों न हो स्‍वदेशीराज्‍य की तुलना में कभी अच्‍छा नहीं हो सकता” यह कथन  दयानन्‍द सरस्‍वती का है। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के चिन्तक तथा आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने वेदों के प्रचार के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। 'वेदों की ओर लौटो' यह उनका ही प्रमुख नारा था। स्वामी दयानन्द ने वेदों का भाष्य (अनुवाद) किया इसलिए उन्हें 'ऋषि' कहा जाता है ।

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