पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे 'अनेक ब्रेकों वाली परन्तु इन्जन रहित मशीन' की संज्ञा दी। मदन मोहन मालवीय ने इसे 'बाह्य रूप से जनतंत्रवादी एवं अन्दर से खोखला' कहा। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इसे 'द्वैध शासन पद्धति से भी बुरा एवं बिल्कुल अस्वीकृत' बताया। नेहरू जी ने इसे 'दासता का नया चार्टर' कहा।
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