खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बालगोबिन भगत भी एक-एक उँगुली से धान के पौधों को पंक्तिबद्ध करके रोप रहे थे। तभी उन्होंने मस्ती भरी तान छेड़ी। उनके गीत का स्वर इतना मनमोहक, ऊँचा और आरोही था कि वह सीधे आकाश में स्थित परमात्मा को टेरता प्रतीत होता था। उसे सुनकर खेतों में उछल-कूद मचाते बच्चों में एक मस्ती आ गई। मेड़ों पर बैठी औरतों के ओंठ गाने के लिए बेचैन हो उठे। किसानों की उँगलियों में भी एक क्रमिक लय आ गई। हल चलाने वाले किसानों के पैर संगीत की थाप पर चलने लगे। इस प्रकार उनके संगीत का जादू सारे वातावरण पर छा गया।