Kola Superdeep Borehole (कोला सुपर-डीप बोरहोल) की जो कि लगभग १२.२ किलोमीटर गहरा है। इसे और अधिक गहरा कर पाना वर्तमान समय में उपलब्ध तकनीक से सम्भव नहीं है। यह पृथ्वी के व्यास का एक हजारवाँ भाग भी नहीं।
मान लें कि हम यह तकनीक उपलब्ध हो जाए तो भी जैसे जैसे हम धरती की गहराई में जाते हैं, यह और अधिक गर्म हो जाती है, और लगभग २० किलोमीटर की गहराई से अत्यधिक तापमान के कारण पृथ्वी का भीतरी भाग पिघला हुआ है। अतः हमें खुदाई करने के साथ-साथ इसकी सतह को ठण्डा भी रखना होगा जो बहुत ही कठिन कार्य होगा। यह आवश्यक है, क्योंकि पिघला हुआ लावा हमारी सुरंग में बाढ की तरह भर जाएगा तथा, भीतर अत्यधिक दबाव होने से यह लावा ज्वालामुखी के रूप में हमारी बनाई सुरंग से बाहर आने लगेगा। यह सब मात्र जो दूरी हम तय करना चाहते हैं उसके लगभग ७००वें भाग तक पहुँचने में भी होने लगेगा।
अतः जब तक पृथ्वी ठण्डी होकर पूर्णरूप से ठोस नहीं हो जाती तब तक सम्भव नहीं हो पाएगा। बस मात्र छह अरब वर्ष की प्रतीक्षा करें। पृथ्वी की ठोस सतह अनुमानित रूप से लगभग एक मिलीमीटर प्रति वर्ष बढ रही है।
यदि इतना आप अभी कर पाते हैं तो भारत के अधिकांश भाग से आप प्रशान्त महासागर की गहराई में होंगे। किन्तु जैसलमेर के पास थार रेगिस्तान के धोरों के बीच एक ऐसा क्षेत्र है जो आपको ईस्टर द्वीप तक पहुँचा सकता है।