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पशुपालन से आप क्या समझते हैं ? इसमें सुधार लाने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।

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पशुपालन

पशुपालन, व्यावहारिक जीव विज्ञान की वह शाखा है जो पालतू पशुओं को मितव्ययितापूर्ण एवं स्वस्थ रखने की कला का ज्ञान कराती है। पशुपालन में सुधार लाने की विभिन्न विधियाँ निम्नवत् हैं

  1. आस-पास का तापमान (Near by Temperature) – पशुओं के आस-पास लगभग 20°C ताप उपयुक्त रहता है। ताप में अधिक भिन्नता होने पर चारा ग्रहण क्षमता तथा पाचन क्रिया प्रभावित होने से उत्पादन घटता है।
  2. धूप या विकिरण (Sunshine or Radiation) – मौसम के अनुसार पशुओं को धूप या विकिरण से बचाने का प्रबन्ध करना चाहिए ताकि शरीर में ताप/ऊर्जा सन्तुलन में सहायता मिले।
  3. भोजन व पानी का प्रबन्ध (Arrangement of Food and Water) – पशुओं के लिए पर्याप्त व सन्तुलित भोजन व पानी का प्रबन्ध होना चाहिए। गर्मी में अपेक्षाकृत पानी की अधिक आवश्यकता होती है।
  4. उचित व्यवहार (Good Behaviour) – पशुओं के साथ दया व मित्रतापूर्ण व्यवहार करने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ता है।
  5. स्वास्थ्य परीक्षण (Health Checkup) – पशुओं का नियमित अन्तराल पर स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए तथा बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही उसको पृथक् कर देना चाहिए और योग्य पशु चिकित्सक से उपचार कराना चाहिए।
  6. खुरों की छटाई (Hoof Triming) – खुरों को समय-समय पर काटते रहना चाहिए क्योंकि एक ही स्थान पर रहने से उनके खुर बढ़ जाते हैं, चलने में कठिनाई होती है।
  7. व्यायाम (Exercise) – पशुओं को चारागाह में भेजकर या अन्य किसी माध्यम से घुमाने वव्यायाम की व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. सींग रोधन – पशुओं की पारस्परिक सुरक्षा तथा अपनी सुरक्षा हेतु सींग रोधन अपनाना चाहिए।
  9. बिछावन व्यवस्था – पशुशाला या पशु बाँधने के स्थान पर मौसम के अनुसार सूखा भूसा, लकड़ी का बुरादा या रेत आदि का प्रयोग बिछावन के रूप में अवश्य करें।
  10. बाह्य-परजीवियों से रक्षा (Protection from External Parasites) – पशु के रहने के स्थान पर मक्खियाँ, जू, खटमले, पिस्सू, चीचड़ी आदि पैदा न होने दें। ये सभी पशु की दैहिक क्रियाओं पर बुरा प्रभाव डालती हैं। अतः सफाई के साथ-साथ कीटनाशकों का प्रयोग करें।
  11. अपशिष्टों से बचाव – घर की सड़ी-गली खाद्य वस्तुओं अथवा अन्य अपशिष्टों को पशुओं को नहीं देना चाहिए, ऐसा करना उनके लिए प्राण घातक भी हो सकता है।

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