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अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या करें।

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अण्डजनन

स्त्री के अण्डाशय के जनन एपीथिलियम की कोशिकाओं से अण्डाणुओं का निर्माण, अण्डजनन कहलाता है। अण्डजनन निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है –
(i) प्रोलीफेरेशन प्रावस्था (Proliferation Phase) – इस अवस्था की शुरुआत उस समय से होती है जब मादा फीट्स (foetus) माँ के गर्भ में लगभग 7 माह की होती है। जनन कोशिकाएँ विभाजित होकर अण्डाशय की गुहा में कोशिका गुच्छ बना देती हैं जिसे पुटिका (follicle) कहते हैं। पुटिका की एक कोशिका आकार में बड़ी हो जाती है तथा इसे ऊगोनियम (ooagonium) कहते हैं।

(ii) वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – यह अवस्था भी उस समय पूरी हो जाती है जब मादा माँ के गर्भ में होती है। इस अवस्था में ऊगोनियम पोषण कोशिकाओं से भोजन एकत्रित करते समय आकार में बड़ी हो जाती है। उसे प्राथमिक ऊसाइट (primary 0ocyte) कहते हैं।

(iii) परिपक्व प्रावस्था (Maturation Phase) – यह क्रिया पूरे जनन काल (11-45) वर्ष में लगातार होती रहती है। प्राथमिक ऊसाइट में पहला अर्द्धसूत्री विभाजन होता है तथा दो असमान कोशिकाएँ बन जाती हैं। बड़ी कोशिका द्वितीयक ऊसाइट (secondary 0ocyte) कहलाती है, जबकि छोटी कोशिका को प्रथम ध्रुवीकाय (first polar body) कहते हैं। यह विभाजन अण्डोत्सर्ग से पहले होता है। दूसरा समसूत्री विभाजन अण्डवाहिनी में, अण्डोत्सर्ग के बाद होता है जिसके फलस्वरूप एक अण्डाणु तथा एक द्वितीयक ध्रुवीकाय (second polar body) बनती है। सभी ध्रुवीकाय नष्ट हो जाती हैं तथा इस सम्पूर्ण क्रिया में एक अण्डाणु प्राप्त होता है। ध्रुवीकार्य का निर्माण अण्डाणुओं को पोषण प्रदान करने के लिए होता है।

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