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टिनडल प्रभाव (Tyndall Effect) से आप क्या समझते हैं

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टिनडल प्रभाव

इस प्रभाव की खोज ब्रिटिश भौतिकवेत्ता John Tyndall ने की थी. अत: इस परिघटना को इसलिए टिनडल प्रभाव (Tyndall Effect) कहा जाता है. जब प्रकाश की किरण कोलाइडी कणों से टकराती है, तो यह प्रकाश पुंज को फैला देती हैं, तथा प्रकाश का मार्ग हमें दिखाई देने लगता है. प्रकाश का कोलाइड्स (colloids) या कोलाइडी (colloidal) के कणों के द्वारा फैलाना टिनडल प्रभाव (Tyndall Effect) कहा जाता है.
समझने के लिए उदाहरण इस प्रकार है: एक कमरे में छोटे से छिद्र के द्वारा प्रकाश की किरण में घूलकणों को तैरते हुए आसानी से देखा जा सकता. ये धूल तथा कार्बन के कण हवा में निलंबित कोलाइड की तरह कार्य करते हैं, जो प्रकाश की किरणों को फैला देते हैं, जिससे प्रकाश का मार्ग दृष्टिगोचर होने लगता है. प्रकाश का धूलकणों तथा कार्बन के कणों द्वारा फैलाना टिनडल प्रभाव (Tyndall Effect) कहलाता है. जब एक घने जंगल के आच्छादन से सूर्य की किरण गुजरती है, तो जंगल के कोहरे में निलंबित छोटे-छोटे जल के कण कोलाइड कणों के समान व्यवहार करते हैं, जो कि प्रकाश को फैला देते हैं, जिससे प्रकाश का मार्ग दृष्टिगोचर होने लगता है, यह भी तो टिनडल प्रभाव (Tyndall Effect) है. क्या आप जानते है कि हमारी आँखों की पुतलियों के रंग टिनडल प्रभाव के कारण ही दिखाई देते हैं. जब पुतली से प्रकाश की किरण गुजरती है तो इनमें निलंबित छोटे-छोटे कण टिनडल प्रभाव उत्पन्न करते हैं, तथा हमारी पुतलियाँ रंगीन दिखाई देती है.

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