द्वितीय बुध्द पद्म संभव को कहा जाता है।
पद्मसम्भवभारत के एक साधुपुरुष थे जिन्होने आठवीं शती में तांत्रिक बौद्ध धर्म को भूटान एवं तिब्बत में ले जाने एवं प्रसार करने में महती भूमिका निभायी। वहाँ उनको "गुरू रिन्पोछे" या "लोपों रिन्पोछे" के नाम से जाना जाता है। ञिङमा सम्प्रदाय के अनुयायी उन्हें द्वितीय बुद्ध मानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि मंडी के राजा अर्शधर को जब यह पता चला कि उनकी पुत्री ने गुरु पद्मसंभव से शिक्षा ली है तो उसने गुरु पद्मसंभव को आग में जला देने का आदेश दिया, क्योंकि उस समय बौद्ध धर्म अधिक प्रचलित नहीं था और इसे शंका की दृष्टि से देखा जाता था। बहुत बड़ी चिता बनाई गई जो सात दिन तक जलती रही। इससे वहाँ एक झील बन गई जिसमें से एक कमल के फूल में से गुरु पद्मसंभव एक सोलह वर्षीय किशोर के रूप में प्रकट हुए थे।