हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था (Hydrogen Economy)
हम सभी जानते हैं कि कोयला तथा पेट्रोलियम सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाले ईंधन हैं, परन्तु ये संसाधन अत्यन्त तीव्र दर से समाप्त होते जा रहे हैं तथा आगामी भविष्य में उद्योग तथा परिवहन इससे बहुत अधिक प्रभावित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त ये संसाधन मानव-स्वास्थ्य के प्रति भी अत्यन्त हानिकारक हैं; क्योंकि ये वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। इनके दहन के फलस्वरूप उत्पन्न अनेक विषाक्त गैसे-कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड वायुमण्डल में मिल जाती हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए वैकल्पिक ईंधनों की खोज सदैव होती रही है। इस सन्दर्भ में भावी विकल्प ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था है। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का मूल सिद्धान्त ऊर्जा का द्रव हाइड्रोजन अथवा गैसीय हाइड्रोजन के रूप में अभिगमन तथा भण्डारण है। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का मुख्य ध्येय तथा लाभ–ऊर्जा का संचरण विद्युत-ऊर्जा के रूप में न होकर हाइड्रोजन के रूप में होना है। हमारे देश में पहली बार अक्टूबर, 2005 में आरम्भ परियोजना में डाइहाइड्रोजन स्वचालित वाहनों के ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया गया। प्रारम्भ में चौपहिया वाहन के लिए 5 प्रतिशत डाइहाइड्रोजन मिश्रित CNG को प्रयोग किया गया। बाद में डाइहाइड्रोजन की प्रतिशतता धीरे-धीरे अनुकूलतम स्तर तक बढ़ाई जाएगी।
आजकल डाइहाइड्रोजन का उपयोग ईंधन सेलों में विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। ऐसी आशा की जाती है कि आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा डाइहाइड्रोजन के सुरक्षित स्रोत का पता आने वाले वर्षों में लग सकेगा तथा उसका उपयोग ऊर्जा के रूप में हो सकेगा।