साबुन की शोधन क्रिया (Cleansing Action of Soaps)
साबुन का अणु दो भागों का बना होता है। साबुन के अणु का एक भाग तो लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला होती है जो अनायनिक होती है तथा साबुन के अणु का दूसरा भाग छोटा कार्बोक्सिलिक समूह (COO– Na+) होता है जो आयनिक होता है। साबुन के अणु को चित्र – 1 द्वारा दर्शाया जाता है जिसमें टेढ़ी-मेढ़ी लम्बी रेखा तो हाइड्रोकार्बन श्रृंखला को निरूपित करती है, जबकि काला गोर्लीय भाग आयनिक समूह (COO–) को निरूपित करता है।
साबुन के अणु का हाइड्रोकार्बन श्रृंखला वाला भाग जल को प्रतिकर्षित करने वाला होता है (या जलविरोधी होता है), परन्तु वह धूल तथा चिकनाई जैसे मैल के कार्बनिक कणों को अपने साथ जोड़ लेता है। इसलिए मैले कपड़ों की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कण साबुन के अणु के हाइड्रोकार्बन वाले भाग से जुड़ जाते हैं। साबुन के अणु का आयनिक भाग (COO–) जलस्नेही होता है जो जल के अणुओं की ओर आकर्षित होता है और अपने हाइड्रोकार्बन भाग में चिपके धूल तथा चिकनाई के कणों को अपने साथ खींचकर जल में ले आता है। इस प्रकार मैले कपड़े की सतह पर लगे धूल तथा चिकनाई के सारे कण साबुन के अणुओं के साथ लगकर जल में आ जाते हैं तथा मैला कपड़ा साफ हो जाता है।
जब साबुन को जल में घोलते हैं तो वह मिसेल (micelles) बनाता है (क) इस मिसेल में साबुन के अणु अरीय (radially) ढंग से व्यवस्थित होते हैं जिसमें हाइड्रोकार्बन श्रृंखला वाला भाग केन्द्र की ओर होता है। तथा जल को आकर्षित करने वाला कार्बोक्सिलिक भाग बाहर की ओर रहता है जैसा कि (ख) में दिखाया गया है।
जब साबुन के पानी में धूल तथा चिकनाई लगा मैला कपड़ा डालते हैं तो मिसेलों के हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाओं वाले सिरे मैले कपड़े की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कणों के साथ जुड़ जाते हैं तथा उन्हें अपने बीच फंसा लेते हैं। इसके बाद मिसेलों के बाहर की ओर वाले आयनिक सिरे जल के अणुओं की ओर आकर्षित होते हैं जिससे हाइड्रोकार्बन वाले सिरों में फँसे मैल के कण कपड़े की सतह से खिंचकर जल में आ जाते हैं तथा कपड़ा साफ हो जाता है।