Welcome to the Hindi Tutor QA. Create an account or login for asking a question and writing an answer.
Pratham Singh in इतिहास
काल्विन के बारे में संक्षिप्त वर्णन कीजिये

1 Answer

0 votes
Deva yadav
edited

काल्विन 

जिस प्रकार जर्मनी में धर्म-सुधार का नेतृत्व-भार लूथर ने सँभाला था, उसी प्रकार फ्रांस में काल्विन ने रोमन कैथोलिक धर्म के दोषों को दूर करने के लिए प्रोटेस्टैण्ट धर्म को जन्म दिया। वह धर्म-सुधार का दूसरा और अधिक प्रभावशाली नेता था। जन्म से वह फ्रांसीसी था। उसका जन्म 1509 ई० में हुआ तथा उसने पेरिस और ऑरलेयाँ विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। वह उच्च विचारों वाला व्यक्ति था और धार्मिक कुरीतियों से उसे घृणा थी। लूथर के विचारों से वह अत्यधिक प्रभावित हुआ तथा 1533 ई० में उसने प्रोटेस्टैण्ट धर्म का अवलम्बन किया, किन्तु फ्रांस के कैथोलिक सम्राट फ्रांसिस के अत्याचारों के कारण अपना देश छोड़कर उसे स्विट्जरलैण्ड में शरण लेने के लिए बाध्य होना। पड़ा। स्विट्जरलैण्ड में धर्म-सुधार ज्विगली के सम्पर्क में आकर उसने प्रोटेस्टैण्ट धर्म का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया।

1536 ई० में उसने एक पुस्तक ‘Institute of the Christian Religion प्रकाशित की, जिसमें प्रोटेस्टैण्ट धर्म का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया था। इस पुस्तक से काल्विन अत्यधिक प्रसिद्ध हो गया। वह अपने सम्राट फ्रांसिस को भी प्रोटेस्टैण्ट बनाना चाहता था। परन्तु इस कार्य में उसे सफलता प्राप्त न हो सकी। 1538 ई० तक उसने जेनेवा में प्रोटेस्टैण्टों का नेतृत्व किया, किन्तु विरोध के कारण 1539 ई० में उसे जेनेवा छोड़ना पड़ा। उसके जाते ही जेनेवा में पुन: कैथोलिकों का बोलबाला हो गया तथा उन्होंने प्रोटेस्टैण्टों का विनाश करने का प्रयास किया।

1541 ई० में अपने अनुयायियों की सुरक्षा के लिए काल्विन पुनः जेनेवा आया। यहाँ उसने कठोर धर्मतन्त्रात्मक व्यवस्था स्थापित करके शासन सूत्र अपने हाथ में ले लिया। गन्दे नृत्य, गीत, त्योहार व थियेटरों को बन्द करा दिया तथा उसने अन्धविश्वासी कैथोलिकों को मृत्युदण्ड देने में भी संकोच नहीं किया। ‘बाइबिल’ का अनेक भाषाओं में अनुवाद कराया गया जिसके कारण यह ग्रन्थ लोकप्रिय हो सका। अपने धर्म-प्रसार के लिए उसने कई प्रोटेस्टैण्ट विद्यालयों की स्थापना की तथा जेनेवा को प्रोटेस्टैण्ट धर्म का केन्द्र बना दिया। अपने विरोधियों का दमन करने के लिए प्रयास करते थे। काल्विन इतना कट्टर प्रोटेस्टैण्ट था कि उसको ‘प्रोटेस्टैण्ट पोप’ की उपाधि प्रदान की गई। परन्तु काल्विन ने अत्यन्त दृढ़तापूर्वक धर्म-प्रसार का कार्य निरन्तर जारी रखा तथा कुछ काल में ही वह प्रसिद्ध धर्म-सुधारक बन गया। देशी भाषा में धर्म प्रचार करने के कारण उसके अनुयायियों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी तथा उसके धर्म का प्रभाव इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड एवं हॉलैण्ड आदि देशों पर पड़ा।

काल्विन द्वारा प्रचारित धर्म शीघ्र ही इन देशों में फैलने लगा। नीदरलैण्ड्स के लोकतन्त्र, लोकतन्त्रवादी उच, स्कॉटलैण्ड के कॉन्वेण्टेटर (Conventator) और इंग्लैण्ड के प्यूरिटन इसी धर्म की देन थी। डचों ने फिलिप के अत्याचारी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर डच गणतन्त्र की स्थाना करके ही दम लिया। कॉन्वेण्टेटरों ने चार्ल्स प्रथम के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय धर्म की सुरक्षा की तथा प्यूरिटनों ने स्टुअर्ट राजाओं के स्वेच्छाचारी शासन का कड़ा विरोध किया। जेनेवा प्रोटेस्टेण्ट लोगों का शरण-स्थल बन गया तथा अनेक देशों के अत्याचार-पीड़ित प्रोटेस्टैण्ट आकर यहाँ शरण प्राप्त करने लगे। ग्राण्ट (Grant) के अनुसार, “महाद्वीप के एक विशेष भाग में काल्विन के नाम एवं प्रभाव का विस्तार कुछ ही वर्षों में हो गया। उसका आन्दोलन केवल जेनेवा तक ही सीमित न रहा अपितु फ्रांस, इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड और नीदरलैण्ड में भी उसका प्रचार हुआ।

Related questions

Follow Us

Stay updated via social channels

Twitter Facebook Instagram Pinterest LinkedIn
...