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Pratham Singh in भूगोल
भू-स्खलन को समझाइये

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Deva yadav

भू-स्खलन का अर्थ

पर्वतीय ढालों का कोई भाग जब जल तत्त्व भार की अधिकता एवं आधार चट्टानों के कटाव के कारण अपनी गुरुत्वीय स्थिति से असन्तुलित होकर अचानक तीव्रता के साथ सम्पूर्ण अथवा विच्छेदित खण्डों के रूप में गिरने लगता है तो यह घटना भू-स्खलन कहलाती है। भू-स्खलन प्रायः तीव्र गति से आकस्मिक उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदा है। भौतिक क्षति और जन-हानि इसके दो प्रमुख दुष्प्रभाव हैं। भू-स्खलन अपने मार्ग में आने वाले प्रत्येक पदार्थ-मानव बस्तियों, खेत-खलियान, सड़क आदि सभी को नष्ट कर देता है। भू-स्खलन से नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं जिससे नदी के ऊपरी भाग में बाढ़ आ जाती है। कभी-कभी किसी क्षेत्र में बड़ी झील बन जाती है जिसके टूटने पर त्वरित बाढ़ से भारी तबाही होती है। भू-स्खलन मानव समुदाय पर कहर बरसाने वाली प्रकृतिक आपदा है। भारत में इस आपदा का रौद्र रूप हिमालय पर्वतीय प्रदेश एवं पश्चिमी घाट में बरसात के दिनों में अधिक देखा जाता है। वस्तुतः हिमालय प्रदेश युवावलित पर्वतों से बना है, जो विवर्तनिक दृष्टि से अत्यन्त अस्थिर एवं संवेदनशील भू-भाग है। यहाँ की भूगर्भिक संरचना भूकम्पीय तरंगों से प्रभावित होती रहती है। इसलिए यहाँ भू-स्खलन की घटनाएँ अधिक होती रहती हैं।

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