नारद स्मृति से यह पता चलता है कि गुप्तकालीन न्याय व्यवस्था में न्यायालय के चार वर्ग थे। नारदस्मृति प्रमुख स्मृतिग्रन्थ है और हिन्दुओं के धर्मशास्त्र का एक अंग है। यह ग्रन्थ विशुद्ध रूप से न्याय-सम्बन्धी ग्रन्थ है जो व्यवहार विधि (procedural law) और मूल विधि (substantive law) पर केन्द्रित है।
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