मौर्य काल में मार्ग कर वसूलने वाले अधिकारी को "महामात्र" (Mahamatya) कहा जाता था। महामात्र राजा के दरबार में एक महत्वपूर्ण पद पर थे और उन्हें राजा के आर्थिक प्रशासन और राजकोष के प्रबंधन का कार्य सौंपा जाता था। वे राजा के नाम पर कर और उपयोगकर्ताओं से उनकी मांगे और वसूल करते थे।
मौर्य वंश के बौद्धिक गुरु चाणक्य (कौटिल्य) ने भी महामात्र के पद पर काम किया था और अपने गुरु चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर सम्राट अशोक को सिकंदर और सेलेऊकस जैसे विदेशी विशेषज्ञों के साथ भारत में साम्राज्य बनाने में मदद की थी।
महामात्र का पद मौर्य साम्राज्य के प्रशासनिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था और उनके अधिकार क्षेत्र में वसूली और वित्तीय प्रबंधन शामिल थे।