जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का नाम भगवान ऋषभदेव होता है, जिन्हें "आदिनाथ" भी कहा जाता है। वे जैन धर्म के प्रमुख गुरु थे और उन्होंने जैन धर्म की मूल शिक्षाओं का प्रचार किया। ऋषभदेव को प्रथम तीर्थंकर माना जाता है और उनका आदिकाल जैन कैलेंडर के अनुसार होता है।
ऋषभदेव के आगमन को जैन धर्म के कल्प का आगमन कहा जाता है और उनका जन्म महावीर स्वामी से पूर्व हुआ था।
ऋषभदेव के जीवन का विवरण जैन आगमों (जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथ) में मिलता है। उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं को साधकर्म (virtuous conduct) के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया और जीवन में अहिंसा (non-violence) का पालन किया।
ऋषभदेव के जीवन और उनकी शिक्षाओं से जुड़े कई पुराने कथाएँ और उपदेश जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे जैन धर्म के आदिगुरु और मार्गदर्शक होते हैं, और उनका जीवन जैन धर्म के मूल तत्वों का प्रतीक माना जाता है।