तमिऴनाडु के चेर वंश के कवियों ने अपने कविताओं में अपने राजा को "सेनगुट्टवन लाल चेर" सबसे महान राजा (மகா ராஜா) कहा है।
सेनगुट्टवन (धर्म परायण कट्तुवन) एवं चेर वंश
सेनगुट्टवन इस राजवंश का सबसे शानदार शासक था. इसे लाल चेर के नाम से भी जाना जाता था. वह प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य शिल्प्पदिकाराम का नायक था. दक्षिण भारत से चीन के लिए दूतावास भेजने वाला वह पहला चेर राजा था. करूर उसकी राजधानी थी. उसकी नौसेना दुनिया में सबसे अच्छी एवं मजबूत थी. इसे पत्तिनी पूजा का संस्थापक माना जाता है. इसे कण्णगी पूजा भी कहा गया।
पत्तिनी पूजा या कण्णगी पूजा क्या है?
दक्षिण के प्रथम चेर शासक उदियनजेरल (लगभग 130 ई.) के पुत्र नेदुनजेरल आदन, तथा इसके दूसरे पुत्र शेनगुट्टुवन (लगभग 180 ई.) द्वारा 'पत्तिनी' (पत्नी) पूजा अर्थात् एक आदर्श तथा पवित्र पत्तिनी को देवी रूप में मूर्ति बनाकर पूजे जाने का विशेष महत्त्व वर्णित है।
‘पत्तिनी पूजा’ के लिए पत्थर किसी आर्य शासक से युद्ध के बाद प्राप्त किया गया और उसे गंगा में स्नान कराकर चेर देश में लाया गया।
शेनगुट्टुवन ने पत्तिनी के संगठन का नेतृत्व अपने हाथ में लिया तथा इस प्रयास में पाण्ड्य एवं चोल देशों का तथा श्रीलंका के समसामयिक शासकों का समर्थन उसे मिला।