हमारी परंपरा बहुत लंबी है। उसकी सभी बातें आज अफ्माने-योग्य नहीं हैं। प्राचीन समय में कुछ बातें स्त्री-पुरुष में अंतर करके उनका पुस : युग है। आज लिप-दीकार्य नहीं है। अत: हमें अस्प में उन्हीं बातों को स्वीकार करना चाहिए जो स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ाती हों। तभी हमारा समाज उन्नति कर सकेगा।