उमा के पिता रामस्वरूप, आधुनिक विचारों वाले तथा स्त्री शिक्षा के समर्थक हैं। वे अपनी पुत्री उमा को बी.ए. तक पढ़ाते हैं। उसके विवाहयोग्य होने पर जब वे योग्य वर की तलाश करते हैं तब वही शिक्षा राह का रोड़ा बन जाती है। पेशे से वकील तथा समाज में उठने-बैठने वाले गोपाल प्रसाद और बी.एस.सी. कर मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाला उनका बेटा शंकर दोनों ही कम पढ़ी-लिखी बहू चाहते हैं। उन्हें दसवीं पढ़ी बहू ही चाहिए। अधिक पढ़ी-लिखी लड़की उन्हें पसंद नहीं। अपनी बेटी की शादी के लिए रामस्वरूप इस बात को (उमो का बी.ए. पास होना) छिपा जाते हैं। उनके आचरण का यह विरोधाभास उनकी इस विवशता को प्रकट करता है कि आधुनिक समाज का सभ्य नागरिक होने के बावजूद उन्हें रूढ़िवादी लोगों के दबाव के सामने झुकना पड़ रहा है।