आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार
राज्यसभा के सभापति भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं. इसके सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं. इनमें से एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल प्रत्येक दो साल में पूरा हो जाता है. इसका मतलब है कि प्रत्येक दो साल पर राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य बदलते हैं न कि यह सदन भंग होता है. यानी राज्यसभा हमेशा बनी रहती है.