तूफानों के बीच के लेखक/रचयिता
तूफानों के बीच (Toophaanon Ke Beech) के लेखक/रचयिता (Lekhak/Rachayitha) "रांगेय राघव" (Raangey Raaghav) हैं।
Toophaanon Ke Beech (Lekhak/Rachayitha)
नीचे दी गई तालिका में तूफानों के बीच के लेखक/रचयिता को लेखक तथा रचना के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। तूफानों के बीच के लेखक/रचयिता की सूची निम्न है:-
रचना/रचना |
लेखक/रचयिता |
तूफानों के बीच |
रांगेय राघव |
Toophaanon Ke Beech |
Raangey Raaghav |
तूफानों के बीच किस विधा की रचना है?
तूफानों के बीच (Toophaanon Ke Beech) की विधा का प्रकार "रिपोर्ताज" है।
रिपोतार्ज फ्रांसीसी शब्द है , गद्य विधा के रूप में इसका आविर्भाव द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास हुआ। हिंदी में रिपोर्ताज का जनक शिवदान सिंह चौहान को माना जाता है। रिपोर्ताज के विकास में हंस पत्रिका का सर्वाधिक योगदान है।
रिपोतार्ज |
लेखक |
रचना वर्ष |
लक्ष्मीपुरा |
शिवदान सिंह चौहान |
1938 |
तूफानों के बीच |
रांगेय राघव |
1946 |
यह लड़ेंगे हजार साल |
शिवसागर मिश्र |
1966 |
युद्ध यात्रा |
डॉ धर्मवीर भारती |
1972 |
नेपाली क्रांति कथा |
फणीश्वर नाथ रेणु |
1978 |
श्रुत अश्रुत पूर्व |
फणीश्वर नाथ रेणु |
1984 |
जुलूस रुका है |
विवेकी राय |
1977 |
रांगेय राघव (17 जनवरी, 1923 - 12 सितंबर, 1962) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए। आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनी परक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी।
पूरा नाम |
तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य (टी.एन.बी.आचार्य) |
जन्म |
17 जनवरी, 1923 |
जन्म भूमि |
आगरा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु |
12 सितंबर, 1962 |
मृत्यु स्थान |
मुंबई, महाराष्ट्र |
अभिभावक |
पिता- श्री रंगनाथ वीर राघवाचार्य, माता- श्रीमती वनकम्मा |
पति/पत्नी |
सुलोचना |
कर्म भूमि |
भारत |
कर्म-क्षेत्र |
उपन्यासकार, कहानीकार, कवि, आलोचक, नाटककार और अनुवादक |
भाषा |
हिन्दी, अंग्रेज़ी, ब्रज और संस्कृत |
विद्यालय |
सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा विश्वविद्यालय |
शिक्षा |
स्नातकोत्तर, पी.एच.डी |
पुरस्कार-उपाधि |
'हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार', 'डालमिया पुरस्कार', 'उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार', 'राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार'। |
उपन्यास
- घरौदा
- विषाद मठ
- मुरदों का टीला
- सीधा साधा रास्ता
- हुजूर
- चीवर
- प्रतिदान
- अँधेरे के जुगनू
- काका
- उबाल
- पराया
- देवकी का बेटा
- यशोधरा जीत गई
- लोई का ताना
- रत्ना की बात
- भारती का सपूत
- आँधी की नावें
- अँधेरे की भूख
- बोलते खंडहर
- कब तक पुकारूँ
- पक्षी और आकाश
- बौने और घायल फूल
- लखिमा की आँखें
- राई और पर्वत
- बंदूक और बीन
- राह न रुकी
- जब आवेगी काली घटा
- धूनी का धुआँ
- छोटी सी बात
- पथ का पाप
- मेरी भव बाधा हरो
- धरती मेरा घर
- आग की प्यास
- कल्पना
- प्रोफेसर
- दायरे
- पतझर
- आखीरी आवाज़
कहानी संग्रह
- साम्राज्य का वैभव
- देवदासी
- समुद्र के फेन
- अधूरी मूरत
- जीवन के दाने
- अंगारे न बुझे
- ऐयाश मुरदे
- इन्सान पैदा हुआ
- पाँच गधे
- एक छोड़ एक
आलोचना
- भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका
- भारतीय संत परंपरा और समाज
- संगम और संघर्ष
- प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास
- प्रगतिशील साहित्य के मानदंड
- समीक्षा और आदर्श
- काव्य यथार्थ और प्रगति
- काव्य कला और शास्त्र
- महाकाव्य विवेचन
- तुलसी का कला शिल्प
- आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम और शृंगार
- आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली
- गोरखनाथ और उनका युग
रिपोर्ताज
काव्य
- अजेय
- पिघलते पत्थर
- मेधावी
- राह के दीपक
- पांचाली
- रूपछाया
नाटक
- स्वर्णभूमि की यात्रा
- रामानुज
- विरूढ़क
पुरस्कार
- हिन्दुस्तान अकादमी पुरस्कार (1951),
- डालमिया पुरस्कार (1954),
- उत्तर प्रदेश सरकार पुरस्कार (1957 व 1959),
- राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1961) तथा
- मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित।
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