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Pratham Singh in Fitter Theory
लिमिट के बारे में समझाइए

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Deva yadav

लिमिट 

“किसी मूल साइज (Basic Size) में स्वीकृत (Permission) वह अधिकतम छूट जिस पर पार्ट्स बनाए जा सकते हैं उस साइज की लिमिट कहलाती है”।

वर्कशॉप में जब पुर्जों का उत्पादन (Production) किया जाता है, तो कारीगर को पार्ट्स के बेसिक साइजों को थोड़ा-सा बड़ा या छोटा बनाने की छूट दी जाती है। यह छूट इतनी दी जाती है कि इससे पार्ट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि कई कारण ऐसे होते हैं। जिससे पार्ट को बिल्कुल ठीक परिशुद्ध (accurate) साइज में नहीं बनाया जा सकता हैे। जैसेे- सूक्ष्ममापी औजारों की गलती, मशीन (Machine) सेटिंग की गलती, टूल की खराबी आदि। के कारण पार्ट्स को बनाते समय साइज में कुछ अंतर (Different) आ सकता है। इसके अतिरिक्त यदि पार्ट्स को सही परिशुद्ध (accurate) माप में बना भी लिया जाए तो, समय अधिक लगता है, इसलिए पार्ट को बनाने के लिए सीमा निर्धारित कर दी जाती है। कि पार्ट को बेसिक साइज (basic size) से कितनी सीमा से अधिक या कम साइज में बनाया जा सकता है, इससे कारीगर को पार्ट के साइज बनाने में आसानी रहती है।और इस सीमा में बने पार्ट खराब भी नहीं होते। यदि शाफ्ट का बेसिक साइज 50 मिमी है, और उस – 0.02मिमी से + 0.02मिमी तक की छूट दे रखी हो,तो 50 मिमी बेसिक साइज वाले इस शाफ्ट को (50-0.02) 49.98 मिमी से (50+0.02) 50.02 मिमी के अंदर किसी भी साइज में बना सकते हैं।
Upper Limit=50+0.02=50.02 मिमी
Lower Limit=50-0.02=49.98 मिमी

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