जनन तंत्र (Reproductive system)
जनन सभी जीवधारियों में पाये जाने वाला एक अतिमहत्त्वपूर्ण तंत्र है, जिसमें एक जीव अपने जैसी संतान उत्पन्न करता है। मानव में लैंगिक जनन पाया जाता है। यह द्विलिंगी प्रजनन प्रक्रिया है जिसमें नर युग्मक के तौर पर शुक्राणुओं का निर्माण करते हैं तथा मादा अण्डों का निर्माण करती है। शुक्राणु व अण्डाणु के निषेचन से युग्मनज का निर्माण होता है जो आगे चलकर नये जीव का निर्माण करता है।
नर जनन तंत्र के द्वितीयक लैंगिक अंग निम्न हैं
(1) वृषणकोष (Scrotum)- मनुष्य में दो वृषण पाये जाते हैं, ये दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैले में स्थित होते हैं, जिसे वृषणकोष (Scrotal sac) कहते हैं। वृषणकोष एक ताप नियंत्रक की भाँति कार्य करता है। वृषणों का तापमान शरीर के तापमान से 2-2.5°C नीचे बनाये रखता है। यह तापमान शुक्राणुओं के विकास के लिए उपयुक्त है।
(2) शुक्रवाहिनी (Vas difference)- ऐसी वाहिनी जो शुक्राणु का वहन करती है, उसे शुक्रवाहिनी कहते हैं। यह शुक्राणुओं को शुक्राशय (Seminal Vesicle) तक ले जाने का कार्य करती है। शुक्रवाहिनी मूत्रनलिका के साथ एक संयुक्त नली बनाती है। अतः शुक्राणु तथा मूत्र दोनों समान मार्ग से प्रवाहित होते हैं। यह वाहिका शुक्राशय से मिलकर स्खलन वाहिनी (Ejaculatory duct) बनाती है।
(3) शुक्राशय (Seminal vesicles)- शुक्रवाहिनी शुक्राणु संग्रहण के लिए एक थैली जैसी संरचना जिसे शुक्राशय कहते हैं, में खुलती है। शुक्राशय एक तरल पदार्थ का निर्माण करता है, जो वीर्य के निर्माण में मदद करता है। इसके साथ ही यह तरल पदार्थ शुक्राणुओं को ऊर्जा तथा गति प्रदान करता है।
(4) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland)- यह अखरोट के आकार की ग्रन्थि है। इस ग्रन्थि का स्राव शुक्राणुओं को गति प्रदान करता है तथा वीर्य का अधिकांश भाग बनाता है। यह वीर्य के स्कन्दन को भी रोकता है। यह एक बहिःस्रावी ग्रन्थि (Exocrine gland) है।
(5) मूत्र मार्ग (Urethera)- मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्रजनन नलिका या मूत्र मार्ग (Urinogenital duct or Urethera) बनाती है जो शिश्न (Penis) के शिखर भाग पर मूत्रजनन छिद्र (Urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलती है। मूत्र मार्ग एवं वीर्य दोनों के लिए एक उभयनिष्ठ मार्ग (Common passage) का कार्य करता है।
(6) शिशन (Penis)- पुरुष का मैथुनी अंग है जो लम्बा, संकरा, बेलनाकार उत्थानशील (erectile) होता है। यह वृषणों के बीच लटका रहता है। इसके आगे का सिरा फूला हुआ तथा अत्यधिक संवेदी होता है इसे शिशन मुण्ड कहते हैं। सामान्य अवस्था में शिथिल व छोटा होता है तथा मूत्र विसर्जन का कार्य करता है। मैथुन के समय यह उन्नत अवस्था में आकर वीर्य को मादा जननांग में पहुँचाने का कार्य करता है।