ग्रीन हाउस प्रभाव
ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमण्डल के सामान्य संगठन तथा पर्यावरण के सामान्य अवस्था में होने पर सूर्य की किरणों से गर्म होने वाली पृथ्वी अधिकतर ऊष्मा को वापस लौटा देती है जो बाह्य वायुमण्डल (exosphere) व अन्तरिक्ष में वापस विसरित हो जाती है। इस प्रकार पृथ्वी का जीवमण्डल क्षेत्र ऊष्मा से बचा रहता है। किन्तु पिछले कुछ दशकों से पर्यावरण में कुछ गैसों; विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड आदि की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी पर तापमान बढ़ने लगा है।
पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से बनी हुई परत ग्रीन हाउस के शीशे की परत के समान कार्य करती है अर्थात् यह सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने देने के लिए तो पारदर्शक (transparent) होती है परन्तु पृथ्वी से गर्म वायु जब ऊपर उठती है तो यह उसके लिए अपारदर्शक (opaque) दीवार का काम करती है, फलस्वरूप पृथ्वी का तापक्रम बढ़ जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड का यही प्रभाव ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) कहलाता है। अन्य गैसें; जैसे- क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs), नाइट्रोजन के ऑक्साइड; जैसे- (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), अमोनिया (NH3), मेथेन (CH4) आदि भी इसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक होती हैं।