in भूगोल
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मौसम भले क्षण-क्षण बदले किन्तु जलवायु बदलने में हजारों क्या लाखों वर्ष लग जाते हैं। इसलिये जब मौसम की बात चलती है तो हम उतने चौकन्ने नहीं होते जितने कि बदलती

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बीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण का आधार तापमान और वर्षा रहा है। तापमान, वर्षा के वितरण और वनस्पतियों के आधार पर कोपेन ने (1918 से 1936 के मध्य) विश्व के जलवायु प्रदेशों को 6 प्राथमिक या प्रमुख भागों में विभाजित किया। इसके बाद इन्हें उपविभागों तथा फिर लघु विभागों में बाँटा है तथा इन्हें सूत्रों मेें व्यक्त किया है। इनमें मुख्य विभाग निम्नवत है:

1. ऊष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु- जहाँ प्रत्येक महीने का तापमान 180 सेल्सियस से अधिक रहता है। यहाँ वर्ष के अधिकांश भाग में वर्षा होती है।

2. शुष्क जलवायु- इन क्षेत्रों में वर्षा कम और वाष्पीकरण की मात्रा अधिक पाई जाती है। तापमान ऊँचे रहते हैं।

3. सम शीतोष्ण जलवायु- सर्वाधिक शीत वाले महीने तापमान 190 से 0.30 सेल्सियस तथा सबसे अधिक उष्ण महीने का तापमान 500 सेल्सियस रहता है।

4. मध्य अक्षांशों की आर्द्र सूक्ष्म तापीय अथवा शीतोष्ण आर्द्र जलवायु- जहाँ सबसे अधिक ठण्डे महीने का ताप -30 डिग्री सेल्सियस तथा सबसे अधिक ऊष्ण महीने का ताप -100 सेल्सियस से कम न रहता हो।
5. ध्रुवीय जलवायु- प्रत्येक महीने औसत ताप 100 से सेल्सियस से कम रहता है।
6. उच्च पर्वतीय जलवायु- विश्व के अधिक ऊँचे पर्वतों पर पाई जाती है।

दुनिया भर में कहीं सुनामी की मार तो कहीं तूफान का कहर, कहीं खूब बारिश तो कहीं वर्षा के लिये हाहाकार, खाड़ी की बर्फबारी, स्पेन में शोलों की बारिश- इन सभी को जलवायु परिवर्तन की ही देन माना जा रहा है तथा सृष्टि के विनाश की ओर बढ़ते कदम अर्थात महाप्रलय के रूप में देखा जा रहा है।

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