विक्रमादित्य की उपाधि भारतीय महाकवि "कालिदास" द्वारा ग्रहण की गई थी। विक्रमादित्य ने उसे स्वयं के दरबार में महाकवि रचना के लिए आमंत्रित किया था, और कालिदास ने उस आमंत्रण का सम्मान करते हुए महाकाव्य "ऋतुसंहार" का रचना की थी। विक्रमादित्य के द्वारा कालिदास को "कवि राज" या "रवि कवि" के रूप में पुनर्निर्दिष्ट किया गया था, और उनकी काव्य रचनाओं को भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है।