बलबन राजा स्वयं को 'नाइब-इ-खुदाई' धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। मानमर्यादा के दृष्टिाकेण से बलबन पैंगंबर के बाद अपने को ही मानता था। राजा को वह जिल्ले अल्लाह (ईश्वर का प्रतिबिंब) मानता था। उसने इस बात पर बल दिया कि राजा को ईश्वर की शक्ति होती है इसलिए उसके कार्यों की सार्वजनिक जांच नहीं हो सकती है।
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